Tuesday, September 13, 2022

क्या लगती हो तुम मेरी?

क्या लगती हो तुम मेरी?

आठ भेष में आती 
एक झिलमिल करती फेरी,
अदल बदल यूँ जाती 
मानो झट से हो पहन आती  
अलग-अलग शैली में 
एक साड़ी चंदेरी,  
छाने-बीने तो खूब
तुम्हारे चन्द्रमय बहुरूप,
फिर भी मैं हूँ अनजान अँधेरी,
नही जानती - 
क्या लगती हो तुम मेरी। 

पढ़ती मन की हर एक बात
बस धीमे से छू कर मेरी हथेली, 
करती पूरा हर वाक्य 
हर अर्धविराम के बाद की पहेली, 
लगता जैसे हो मेरी 
वह कच्ची उमर की पक्की सहेली
 (१) 

तरह तरह से रिझाते 
अधूरे-पूरे अक्षर के आकार,
श्रृंगार रस से भीगा लगता 
उपमा रूपक का संसार, 
बन जाती मैं खुद का 
सबसे सुन्दर अनुवाद, 
जब बन जाती तुम 
मेरी प्रीति मेरा अनुराग। (२) 

कभी स्पष्टवक्त अनुजा बन 
बता जाती हर रस की
सही मात्रा सही हद, 
तो कभी रिक्तपटिया सी भार्या बन 
ग्रहण कर जाती
हर कुंठा हर कटुशब्द (३) 

कभी बन शिक्षिका जड़ देती 
मन में समस्त शब्दकोष,
सिखलाती सूक्ष्म शब्द चयन

ध्वनि अलंकार गुण दोष, 
देती अभिव्यक्ति की सशक्ति  
कुछ इस भांति, 
कि लिखूँ तो काव्य 
पर पढ़ो तो क्रांति। (४)   

पहली बार देखा तो लगा 
अनंत प्रार्थनाओं के बाद 
सीधे परीनगर से आयी 
बिना किसी मिलावट के
बार बार देखा तो लगा 
जैसे मैंने ही बनाया
इसे 
अपनी लिखावट से, 
नयन-नक्श से लगती
मेरी आँखों की चन्द्रबिन्दु का तारा, 
जब बन जाती मेरी आत्मजा 
मेरे प्राणो का अंतिम सहारा  (५) 

कभी थक जाती तो 
बन जाती मेरी अवमूल्यित माँ, 
बड़ी सरलता से सिखा देती 
जीवन का कठिन व्याकरण,
एक शब्द प्रयोग ना करती 
बस दिखा देती एक सुदृढ़ उदाहरण । (६)  

जब बन जाती मां भारती 
सुधाती सारे मूल रूप 
संधियों को तोड़ मोड़ के, 
परदेस में रखती मुझे 
जड़ो से जोड़ के, 
रोक नहीं पाऊ आनंदमय अश्रु 
जब सुन लूँ अपने अंशों को 
दो शब्द भी इसके बोलते  (७) 

देती वेद मन्त्रों का उच्चारण  
वीणा वाणी की स्वरा, 
अंतस तक रखती मुझको  
उच्च-कम्पित सुशोभित खरा, 
जब जिव्हा पर उतर जाती
बन कर माँ अक्षरा  (८) 

छाने-बीने तो खूब
तुम्हारे चन्द्रमय बहुरूप,
फिर भी मैं हूँ अनजान अँधेरी,

नहीं जानती -
 
लगाऊं कौन से स्वर
सजाऊं कौन से व्यंजन,
कैसे करूँ नमन, 
दूं कौन सा उपहार?
कैसे मनाऊं यह चौदह सितम्बर का
मेरा मनभावन त्यौहार? 
अब बस भी करो 
यह रिश्तों की हेरा फेरी,
बताओ ना !
क्या लगती हो तुम मेरी?

Copyrighted/Published: https://sahityakunj.net/entries/view/kya-lagati-ho-tum-meri

पृष्ठभूमि: भारतवर्ष में मनाए जाने वाले पचासों पर्वों में से मेरे सबसे मनभावन पर्व पर सीधे ह्रदय से निकली मेरी नयी रचना - 


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