Monday, September 20, 2021

Tum Se Na Ho Payega (hindi)

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तुम से ना हो पायेगा 


नवरसों से भर भर के, 
जब भेजेंगे हम मतों के तीर,
तो कौन तुम्हे बचाएगा ?
कोशिश भी ना करना प्यारी,
दसों दिशाओं से बोले हम पीर, 
कि तुमसे ना हो पायेगा !

यह जो अव्वल आयी हो आज 
बस रट्टा मारी मारी, 
अनर्थ सारे अंक, 
कल बस करनी है तैयार
रोटी भाजी तरकारी । (१) 

बनाएं है यह जो छप्पन पकवान, 
और सजाएं है कला शिल्प के चित्रहार, 
जो हमपे होता समय अपार 
हम भी पालते रुचियाँ हज़ार । (२) 

इतनी सादी सात्विक कि 
गाय समझ यह दुनिया चर जाएगी, 
इतनी बनी ठनी बनावटी कि 
अत्यधिक श्रृंगार देख यह दुनिया डर जाएगी । (३) 

इतनी मधुभाषी कि कैसे बनोगी  
कोई चिकित्सक प्राध्यापिका या प्रबंधक, 
इतना उच्च स्वर कि सब कहें
अशिष्ट कठिन भयानक । (४) 

विदेशी हो तो होंगे नखरे हज़ार 
देसी हो तो होगी गऊ गंवार, 
इतनी हल्की कि हवा में उड़ जाएगी  
इतनी भारी कि धरा ही फट जाएगी  ।  (५) 

बन जाओ अब प्रेमिका हमारी 
लगती हूबहू विश्वसुंदरी, 
वरना खो बैठोगी रंग रूप 
यूँ करेंगे चरित्र हनन हर गली बिरादरी । (६) 

लेलो चाहे कोई उपाधि 
करलो उच्चतम से उच्चतर शिक्षा पूरी, 
जब तक ना जाओगी बियाही और फलोगी दो पूत 
रहोगी मात्र अधूरी की अधूरी । (७)

अरे तुम कैसे बनी पटरानी
कैसे मिली है यह सत्ता ? 
निश्चित होगी पहुंच पिता या पति की 
या मिला होगा नियति  का कोई तुरूप पत्ता  । (८) 

दिखती हो बड़ी संतुष्ट सी आज 
अच्छी नहीं लगती यूं आनंद में रम, 
चलो याद दिलाएं कोई दुर्बलता कोई दुखद क्षण 
एक नयी तरह से करें यह शान्ति भंग । (९) 
 

प्रथमं शैलपुत्री  द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेतिचतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री  नवदुर्गाप्रकीर्तिता:
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

हँसते हुए झेले थे, 
रस लेके भेजे गए 
वह व्यंग विष के तीर,
रूढ़ियों की टकसाल दोहरा रहे 
आप पीर हो या हो कोई कीर?
अपने मंद मतों को दर्शाने के लिए, 
आपका बहुत बहुत आभार।
व्यस्त थे इतने स्वयं के विकास में 
कि पहले ना किया कोई प्रतिवाद कोई वार ।
यूँ तो हम रखते नहीं 
विषैले तत्वों से कोई सरोकार, 
नवरात्रि  के इस पावन अवसर पर 
सोचा हम भी दिखा दें अपना धर्म ईमान, 
उठा लें अपनी कलम का कमान
और लगा दें एक तीर से नौ निशान  ।

इन अंको से आंकने वालो को 
दो क्षण में ही हर लेते हैं ,
जब मस्तक पे सजे अर्धचंद्रकार से 
लकीरों के बीच भी पढ़ लेते हैं । (१) 

ना रुचियाँ ना अभिरुचियाँ, 
हैं बस कुछ माताकृपाएं,
मिली कुछ इस भांति  
यह दसों दिशाओं में फैली दशभुजाएँ, 
कि समय से पराजित कभी हो ही ना पाए  । (२) 

जिन्हे कभी खटकती सादगी 
तो कभी वस्त्र अलंकार, 
आओ पढ़ा दें उन्हें सौंदर्यशास्त्र का पहला पाठ, 
सादगी की सशक्ति सिद्ध हुयी 
जब निरंतर फिराए मोती एक सौ आठ, 
और श्रृंगार रसे केवल स्वयं के लिए 
उम्र सोलह हो या साठ । (३) 

नहीं आती रंगीन भाषा इनसी 
नहीं सीखी नपी तुली सी बोली सतही, 
बस रखते एक कलश में मधु तो दूजे में लहू, 
सीधे विचारों से होता संचार 
और सन्देश होते शुद्ध सहृदयी । (४) 

हमारा श्वेत-श्याम में विभाजन करके 
इन्हें परमानन्द मिला है।
है इनकी समझ से कोसों दूर कि 
यह गहन कमल कीचड़ में नहीं 
नरक से होकर खिला है । (५) 

लगता जिन्हे कि मान प्रतिष्ठा 
बनते-बिगड़ते लगते एक दो दिन, 
दिखते इन्हें हम मात्र 
एक शिकार एक कमसिन, 
पर माँ ! मत घबराना तुम, 
बेटी नहीं, जन्मी है एक बाघिन ।  (६) 

सुन कर प्रगति की 
यह सीमित परिभाषा
है स्तंभित मेरे मानसबाण, 
हम हैं ऐसा बीज 
जो चूक से भी दब जाए 
तो जन जाए सम्पूर्ण ब्रम्हांड । (७) 

आज के रावण को जलाने 
नहीं चाहिए कोई वानर सेना 
ना कोई रामभक्त मदारी, 
बस चाहिए एक अदृश्य त्रिशूल से 
अदृश्य आड़ तोड़ती, 
कर्मठ स्वाधीन सी नारी । (८) 

हर घाव पर गौरव हमें
हर भूल से मिली सीख है याद,
यह शान्तिचक्र अर्जित हुआ
घोर नवचक्र साधन के ही बाद। 
इन पुनर्निर्मित कर्णों के बगल 
अब सदा रखते एक शंख,
जो बोले जामवंत सा नाद ।  (९)