Friday, October 22, 2021

Mera Kuch Saamaan


मेरा कुछ सामान 


नमस्कार!
आइये बैठिये!
आपका बहुत बहुत स्वागत है
मेरे दस कक्षों के घर में,
अनगिनत खुशियां डाली
हर खिड़की हर दर में।
इतनी माया ममता बुद्धिमता बरसाई
हर नुक्कड़ कोने वास्तु में,
कि जीवन मिले ना मिले अन्य किसी ग्रह पर,
अवश्य मिल जाएगा मेरे गृह की प्रत्येक वस्तु में।  

शुरू करती हूँ प्रवेश मार्ग 
हरे भरे आँगन बगीचे से,
"हर्ष" से सींचे मैंने इतने गमले 
कभी ऊपर कभी नीचे से, 
आमोद बिछाया बाघ बैठक के फर्नीचर बंदनवार में,
उल्लास पिरोया हर रंग के पवन झंकार में। (१)

इतने देशों से लायी
इस बैठक कक्ष का सामान,
तब जाकर बना यहाँ का "अभिमान"।  
हर दीवार पर भर-भर के चिपका दी
संसार की सबसे सुन्दर तस्वीरें,
गर्वान्वित करते मुझे यह गद्देदार सोफे,
सौ इंच का टीवी और प्रदर्शन कृतियों की लकीरें। (२)

और यह है चांदी के छुरी-कांटो
से "मनोरंजित" भोजन कक्ष,
भर-भर के परोसा आतिथ्य
दस कुर्सियों की भोजन मेज़ पर,
और उसपर चिपकायी चंदेरी चटाई इस कदर
होने नही देती तनिक भी इधर उधर। (३)  

पीढ़ियो से इतने "प्यार" से संभाले
जाने कितने अचार मिर्च मसाले,
हर परिमाण के बर्तन डिब्बे जुटाए 
जमाये खानों में कस कस के,
रसोई पर न्योछावर किए
जाने कितने प्याले प्रेम रस के। (४)   

और यह है घर के अंदर ही दफ्तर, 
डाली यहाँ बेहिसाब "प्रेरणा" 
हर उपकरण का सर्वश्रेष्ठ रूपांतर, 
चार चित्रपटों वाला नवीनतम संगणक 
एकाधिक वैशिष्टयों वाला अधुनातम मुद्रक,
और ऊंचा सा तख्ता धरे
एक सौ से अधिक पुस्तक। (५) 

सोने वाले दो, पर तकिये हैं बीस, 
चारो ओर परदों की परत तीस,
भूमि पर सुप्त कालीन आलीशान,
प्रकट तो करती हूँ प्रतिदिन "आभार" 
पर लौटा ना पाऊँगी इस शयन कक्ष के एहसान । (६)

किस परिधान पर क्या जंचता है,
किसे कौनसा अलंकार अच्छा लगता है, 
कौन चाहता इस्त्री सिलाई, 
किसे हैंगर तो किसे ड्रावर भायी, 
सारी "दिलचस्पी" सारी संवेदना लुटा देती हूँ
इस वस्त्र कक्ष में धीरज धर के घंटो बिता देती हूँ।(७)

और यहाँ हज़ारो की तादाद मे भरे
खिलौनों से मेरी लाखों "आशाएं",
एक प्रतिशत भी संदेह ना आए -
खेल का परिश्रावक चिकित्सक बना देगा
गृहों का नमूना वैज्ञानिक बना देगा
पिंग-पांग का संग्रह सीधे ओलिंपिक पंहुचा देगा।(८)

पावचक्की साइकिल डंबेल से तना, 
योग चटाई इलाजी वृक्षों पत्थरो से सना,
"श्रद्धा" का पात्र व्यायाम कक्ष,
आधुनिक पुरातन का उत्तम मिश्रण,
भले ही महीनो होते नहीं दर्शन,
फिर भी मेरी सारी आस्थाएं है यहाँ अर्पण।(९)

अंततः यह है मेरा अतिपवित्र पूजा कक्ष,
ध्यान जप से भर दी है परम "शान्ति",
एक विस्तृत सा मंदिर अनेकों प्रतिमाएं,
बगल में बड़ी सी अलमारी में सधी 
पूजा की पुस्तकें यज्ञ सामग्री वृत कथाएं।(१०)

नमस्कार!
कोने में चुप बैठा
एक लाचार उपेक्षित वंचित इंसान,
सामान को मिलता इतना सम्मान
देख कर है बड़ा हैरान परेशान,
मन ही मन सोच रहा कि काश! 

वहाँ सुख बरसाते बरसाते,
यहाँ एक आंसू ही सुखा दिया होता। (१)
वहाँ गौरव करते करते,
यहाँ एक गुण ही स्वीकार लिया होता। (२)
वहाँ मनोरंजन करते करते,
यहाँ देख बस एक बार मुस्कुरा दिया होता। (३) 
वहाँ प्रेम रस बहाते बहाते,
यहाँ स्नेह का एक घूँट ही पिला दिया होता। (४)
वहाँ प्रेरणा जगाते जगाते,
यहाँ कल की किरण देखने का एक कारण ही दिखा दिया होता। (५)
वहाँ आभार प्रकट करते करते,
यहाँ वर्षो की सेवा को एक क्षण ही सराह दिया होता। (६)
वहाँ दिलचस्पी दिखाते दिखाते,
यहाँ दिल का नहीं तो दिन का हाल ही जान लिया होता। (७)
वहाँ आस लगाते लगाते, 
यहाँ एक प्रतिशत विश्वास ही जता दिया होता।(८)
वहाँ आस्था भरते भरते,
यहाँ एक ईमान ही भान लिया होता। (९)
वहाँ शांतिकुंज बनाते बनाते,
यहाँ मन के कोलाहल को बस हल्के से सहला दिया होता। (१०)

चीज़ो के दाम
ब्रांडो के नाम जानते जानते
इंसान की कीमत को भुला दिया है।
अति की हद करते करते 
धरती को स्पर्धा का आलय बना दिया है।
भौतिकवाद में खोते खोते 
घर को मंदिर की जगह संग्रहालय बना दिया है।

देख निर्जीवो के प्रति
इंसान का यह शाश्वत समर्पण, 
लगता पृथ्वीग्रह पर हो
जैसे एक सर्वव्यापी भ्रम -
जब आएगा यमराज का निमंत्रण,
चार कन्धों संग चलेंगे
सामान से आबाद चार बड़े बड़े वाहन।

सन्दर्भ: डॉ. बारबरा फ्रेड्रिक्सन की किताब "पॉसिटिविटी" में विस्तारित सकारात्मकता के दस पहलुओं पे आधारित https://counselorcarmella.wordpress.com/2012/07/31/dr-fredricksons-10-positive-emotions/)

Copyrighted/Published: Published here https://sahityakunj.net/entries/view/mera-kuchh-saman 

पृष्ठभूमि: संसार में हास्यास्पद गति से बढ़ते हुए भौतिकवाद से प्रेरित "Black Friday" पर विशेष मेरी नयी रचना