Thursday, June 1, 2017

Didi Chaalisa (Hindi)

अरे कोई यहां के जाले  हटाओ
और तस्वीर ज़रा सीधी लगाओ
इस कैलेंडर पे आज की तारीख दिखाओ
कम  से कम चादर तो ठीक से बिछाओ

पापा आपके मोज़े बिलकुल मैचिंग नहीं
और पैंट पे इस्तरी  तक नहीं
मम्मी चलो यह पुराना कुर्ता सुधरवा दूँ
अरे ऋतु यह क्या पहन के आ गयी तू

वो भी क्या सुहाने दिन थे
जब यूँ चलती थी घर की सरकार
छोटी छोटी बांतो में डाँटो में
छुपी थी एक बड़ी बेटी बड़ी वास्तुकार

रेत से ईँट के घर तक का
यह सफर कहाँ था आसान
इस भेदभाव भरी दुनिया में
बनानी थी अपनी अलग पहचान

कितना बचपन खोया था
दूर शहर पढ़ने जाने में
कितनी रातें जगी थी
कागज़ के मकान बनाने  में

अब सधते हैं कंप्यूटर पे नक़्शे
शहर भर प्रदेश भर
कभी सजते हैं महलो से घर
कभी खड़े होते न्यायालय  कभी दफ्तर

इन बुलंद इमारतों के नीचे
कोई खंडहर है यह न समझना
बोई है इनमे एक बड़ी सोच
और पिरोया है एक बड़ा सपना

सपनो सी सुन्दर मोरनी बनके
आयी थी इस घर आँगन
दीदी से शुरू और दीदी पे ख़तम
एक शब्द में सिमटा था मेरा बचपन

साइकल ताश सितौलिया
चित्रकारी नाच रंगोली
गणित विज्ञान लेखन कला
चाल चलन और मीठी बोली

इन सीखों की गिनती करते
सौ पीढ़िया बदल जाएंगी
इस माँ सी दीदी पे लिखते लिखते
चालीस क्या चार सौ लाइन कम पड़  जाएंगी