Monday, February 12, 2024

नई नवेली प्रेमिका

 नई नवेली प्रेमिका 


एक छवि परछाई सी
पूछ उठी सकुचाई सी
क्या तुम्हे मुझसे प्रेम है?

मैं ना छवि ना कवि
केवल एक लठ्ठमार अजनबी 
कह दिया - 
इतना प्रकट प्रश्न उठाया है
स्पष्टवक्ता तो तुम अवश्य हो,
पर प्रेम का प्रश्न तो दूर 
दर्पण देखो तो जानोगी
तुम एक भयानक दृश्य हो।

अतिलज्जित वह 
सीधे पहुँची शीशमहल के द्वार
थे दर्पण दर्पण हर दीवार,
अलग अलग मुद्राओं में
लिए रेतघड़ी आकार 
खड़ी थीं परमसुन्दरियाँ 
स्वयं को निहार।
होड़ में उसने भी
ढूँढा एक अयुगल,
अनायास ही बोल पड़ा
वह उत्तल, 
बनना है प्रेम के योग्य 
तो कर लो केवल यह दो काम -
करके कसरत हर अंग
तोड़ दो लव हैंडल्स की पगार, 
केश नख पर लेप बहुरंग 
ओढ़ लो आधुनिक वस्त्रालंकार।  

चंद माह में थी मानो 
एक रूपवती तैयार, 
अवतल अवतल बोल उठा
नज़रों से बचना इस बार। 
नयी छवि में कर श्रृंगार 
पुनः आ गयी मेरे द्वार - 
बोली अब कर ही लो स्वीकार!
पर मैं अब भी ना छवि ना कवि
कह दिया -
काया तो पलटी सी है
पर छाया अब भी ढलती सी है,
माना कि सविराम उपवास
योगाभ्यास कर आयी हो,
पर ना जाने क्यों
पुनः नहीं भायी हो,
माना कि भरपूर किया
धन व्यय बाजार भूषाचार,
पर स्वीकारना ही होगा
पुनः मेरा अस्वीकार।

छन से टूटी 
वह पराजित बेहाल 
पर अकस्मात् सुनाई पड़ी 
कहरवा सी ताल, 
समक्ष था एक दर्पण गुलाल 
जाना पहचाना था आकार
चार थे खंड 
और बोल गया बस यह दो छंद - 

चाहती है
प्रेमिका का ताज,
पर है मात्र दूजों की
पुष्टि अनुमति स्तुति की मुहताज, 
जाने क्यों
दूजों के मन में उतर कर
स्वयं की छवि सुधारती है,
क्यों ना पहले उतार ले 
स्वयं की वह परतें
जो बेहद बनावटी हैं। 
हाँ! यह आतंरिक कार्य
है कसरत दण्ड से
कहीं अधिक दर्दनाक,
पर विशुद्ध रूप हेतु
कायापलट नहीं 
अपितु चाहिए पुनरुत्थान। 
 

चाहती है
प्रेमी का पूरा ध्यान, 
पर है 
स्वयं से पूर्णतः अनजान,  
जाने क्यों दूजों से 
स्वयं को देखने सुनने
समझने की भिक्षा मांगती है, 
क्यों ना पहले अपने
आतंरिक अंधकारों में झांकती है।
 हाँ! यह आतंरिक सैर
है प्रसाधन से अधिक कष्टकार,   
पर है संसार का सबसे
बहुमूल्य आभूषण - आत्मसाक्षात्कार।  


हर प्रस्तावी प्रश्न
स्वयं से ही उठाया था 
हर उत्तर में स्वयं को ही 
अक्षम्य पाया था।  
छवि और अजनबी 
दोनों तू ही है, 
क्योंकि स्वयं से अजनबी 
भी तू ही तो है।  
मोलभाव में महारथ 
फिर स्वयं को
इतना कम क्यों तोलती है

वचन वर्णन में विशेषज्ञ 
फिर स्वयं से
इतना कम क्यों बोलती है?

स्वयं की अवज्ञा
भटक दर्पण दर्पण,
अंतस तक भर लिया
एक घृणित दुर्वचन।  
आज देना
बस एक वचन -
स्वयं को 
देख लेना जी भर के 
सुनना जमा सारा ध्यान,
समझना बिन धारणा
रखना हर भाव का भान,
और स्वयं को
स्वयं ही दे देना  
एक नई नवेली प्रेमिका सा मान। 

पृष्ठभूमि:

इस वेलेंटाइन दिवस
चलो पलट पटल देते हैं,  
इस बदलते हुए युग में 
हम भी प्रेमी बदल लेते हैं।  

Copyrighted/Published: https://sahityakunj.net/entries/view/nai-naveli-premikaa

सन्दर्भ:
१. A Radical Awakening: Turn Pain into Power, Embrace Your Truth, Live Free, Shefali Tsabury 

२. Power: A Woman's Guide to Living and Leading Without , Kami Nekvapil 

Background Photo credits:

https://www.artstation.com/artwork/Pknb1


Monday, January 29, 2024

प्रथम स्थान

 https://www.instagram.com/p/C2pkMW2gRfl/


https://sahityakunj.net/entries/view/pratham-sthaan

हर यम द्वितीया 
बस यूँ ही खा लेते हैं 
दो रुपए के बताशे और 
एक कलम की सौगंध,
कि हाँ!
एक दिन हम भी लिख जाएंगे
एक बिकने वाला छंद। 
विगत बरस थी सूनी दिवाली
और सूखा सा दवात पूजन, 
बस कलम की प्रतिक्रमा में
घूम रहे थे गत जीवन के चार चयन।  

दादी माँ ने घंटों तक 
हर एक पंक्ति को सराहा था, 
विक्रयी से भी ऊंचे स्वर का 
एक ढिंढोरा मारा था। 
ले जो आया था 
मेरा दसपंक्तीय कोआन 
जीवन का प्रथम प्रथम स्थान। 
 
एक छोर ढिंढोरा 
तो दूजी ओर
जैसे बंसी से खिंचती
एक मोहित मीरा,
यूँ संक्रय कर जाती थी
नवरसों की सरिताएँ,
गतिमय भेंट जाती थी  
सौ सौ शतपंक्तीय कविताएँ। 

गति का तीजा नियम ही था   
बन जाना दुर्गति समान,  
रुक कर देखा तो
कलम थी निशब्द 
और कागज़ जैसे रेगिस्तान। 
पर जन्म से किया बस लेखन   
तो जन डाले 
नए प्रयोग नई शालाएँ, 
कलम तो बस एक साधन
तो भर डाली नई स्याहियाँ नई मुद्राएँ। 

कवियों की लिखावट से
मण्डियों की दिखावट से
आ ही गयी कलम मेरी तंग, 
अकस्मात् हुई कमानी सी खड़ी
और स्वयं लिख डाला एक रक्तरंजित छंद - 
कि तुम्हें मेरी सौगंध!
यदि बनना है सत्य में कवि से कविवर तो 
पुनः सुना दो 
देश को सोनचिया की चहक 
पितृगणों को वाहवाहियों की खनक,
निःशुल्क दिला दो   
मातृभाषा को मूर्तितल चरम
और काव्य को वही 
स्थान प्रथम। 

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सन्दर्भ: काव्य संकलन "मेरे सूरज का टुकड़ा" में प्रकाशित https://www.amazon.in/dp/B0C4QHLB18/ 

पृष्ठभूमि: 
मेरे प्रथम काव्य संकलन को मिला
अखिल भारतीय कला मंदिर के वार्षिकोत्सव में "साहित्य कला रत्न सम्मान" 
और संग ही प्रस्तुत है मेरी रचना "प्रथम स्थान"