Monday, January 29, 2024

प्रथम स्थान

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हर यम द्वितीया 
बस यूँ ही खा लेते हैं 
दो रुपए के बताशे और 
एक कलम की सौगंध,
कि हाँ!
एक दिन हम भी लिख जाएंगे
एक बिकने वाला छंद। 
विगत बरस थी सूनी दिवाली
और सूखा सा दवात पूजन, 
बस कलम की प्रतिक्रमा में
घूम रहे थे गत जीवन के चार चयन।  

दादी माँ ने घंटों तक 
हर एक पंक्ति को सराहा था, 
विक्रयी से भी ऊंचे स्वर का 
एक ढिंढोरा मारा था। 
ले जो आया था 
मेरा दसपंक्तीय कोआन 
जीवन का प्रथम प्रथम स्थान। 
 
एक छोर ढिंढोरा 
तो दूजी ओर
जैसे बंसी से खिंचती
एक मोहित मीरा,
यूँ संक्रय कर जाती थी
नवरसों की सरिताएँ,
गतिमय भेंट जाती थी  
सौ सौ शतपंक्तीय कविताएँ। 

गति का तीजा नियम ही था   
बन जाना दुर्गति समान,  
रुक कर देखा तो
कलम थी निशब्द 
और कागज़ जैसे रेगिस्तान। 
पर जन्म से किया बस लेखन   
तो जन डाले 
नए प्रयोग नई शालाएँ, 
कलम तो बस एक साधन
तो भर डाली नई स्याहियाँ नई मुद्राएँ। 

कवियों की लिखावट से
मण्डियों की दिखावट से
आ ही गयी कलम मेरी तंग, 
अकस्मात् हुई कमानी सी खड़ी
और स्वयं लिख डाला एक रक्तरंजित छंद - 
कि तुम्हें मेरी सौगंध!
यदि बनना है सत्य में कवि से कविवर तो 
पुनः सुना दो 
देश को सोनचिया की चहक 
पितृगणों को वाहवाहियों की खनक,
निःशुल्क दिला दो   
मातृभाषा को मूर्तितल चरम
और काव्य को वही 
स्थान प्रथम। 

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सन्दर्भ: काव्य संकलन "मेरे सूरज का टुकड़ा" में प्रकाशित https://www.amazon.in/dp/B0C4QHLB18/ 

पृष्ठभूमि: 
मेरे प्रथम काव्य संकलन को मिला
अखिल भारतीय कला मंदिर के वार्षिकोत्सव में "साहित्य कला रत्न सम्मान" 
और संग ही प्रस्तुत है मेरी रचना "प्रथम स्थान"