Thursday, August 31, 2023

खाना तो खा ले

कवि सम्मलेन :
चाहे देश कोई भी हो, आज के माता पिताओं की एक शिकायत होती है कि हमारा बच्चा खाना नहीं खाता , तो इस ही भावना पर आधारित है मेरी छोटी सी कविता, 
और कविता का शीर्षक है   

खाना तो खा ले 

आजा मेरे कान्हा
थोड़ी सेहत बना ले,
तेरी व्यग्र व्याकुल यशोदा
निशिदिन यही पुकारे
खाना तो खा ले
खाना तो खा ले।
 
खा ले यह रोटी दाल संग
लौकी पालक की सब्ज़ी,
देख ले संग संग
पॉ पैट्रॉल कोकोमेलॉन
यह अतरंगी सा ब्लिप्पी।
खा ले ककड़ी गाजर मूली
कर ले सारे फलों का आहार,
देख ले संग संग
यह है माँ का मनभावन
दुरुस्त तंदुरुस्त अक्षय कुमार।
 
मैं आज की व्यस्त माँ,
मेरी रसोई में
इलेक्ट्रॉनिक्स का इत्र समाया,
कोना कोना
श्वेत-श्याम चार्जरों से सजाया।
थाली सफाचट कर डाले
मेरा मोहन धर मौन,
मेज़ है खाने की
पर मुख्य पात्र
यह चिकना टीवी
मेरा चतुर सा फोन।
 
हाय! शोधकर्ताओं ने सिखाया
यह कैसा चिंताजनक विज्ञान,
स्क्रीन संग भोजन करे
बोली भाषा काया
मानस तक का घोर नुक़्सान।
बस आज से बंद मनोरंजन
ली है मैंने ठान,
थाली फिर भी होगी सफ़ाचट
यूँ भरूँगी मनमोहन के मन में
पौष्टिक भोजन का ज्ञान।
 
मैं आज की शिक्षित माँ
स्क्रीनमुक्त मेरा रसोईघर,
मेज़ है खाने की
और मुख्य पात्र
यह पौष्टिक भोजन।
पर नहीं चला
मेरा तुरूप पत्ता
व्यर्थ हुई हर फ़रियाद,
धरी पड़ी हरी सब्ज़ी
काले पड़े फलों के सलाद।
हमारा बच्चा खाना नहीं खाता
आज हर दिशा से
यही शिकायत आती है,
सच कहूँ तो
खाना खिलाने की कल्पना से
धुरंधरों को भी नानी याद आ जाती है।
 
नानी से याद आया—
उन गर्मियों की छुट्टियों में
कुछ इस तरह खिलाती थी
हर पहर मैं एक रोटी
अधिक ही खाती थी।
वह अतिव्यस्त थी सुशिक्षित थी
पर उन अमूल्य क्षणों में
सारा ध्यान मुझ पर जमाती थी,
जिस विषय पर कहूँ
एक मनगढ़ंत कहानी सुनाती थी।
स्वयं को परिवेश को भूल
एकटक बस मुझे निहारती थी
देख मुझमे मेरी माँ की छवि
अकारण ही गर्व से गद्‌गद्‌ हो जाती थी।
तब भी मेज़ थी खाने की
पर मुख्य पात्र केवल और केवल मैं थी।
 
आज हर गोकुलपुत्र
कभी तुतलाता
तो कभी व्यक्त न कर पाता,
पर करता बस यही पुकार,
नहीं चाहिए कोई पीज़्ज़ा बर्गर
ना कोई कार्टूनी किरदार।
चंद क्षणों के लिए
भूल जा शोधकार्य का प्रवचन
छोड़ दे इलेक्ट्रॉनिक्स की मधुशाला
रोक दे व्हाट्सएप्प का आगन्ता तूफ़ान,
बस बैठ जा मेरे संग
हो जा इस मेज़ पर उपस्थित
जमा दे मुझ पर सारा ध्यान,
सुन ले मेरे दिन का हाल
कितना अद्भुत था
वह नए मित्र संग खेल,
कितना कठिन था
वह गणित का सवाल।
तेरे बिन बोले
“खाना तो खा ले“
बिन विनती बिन डाँट,
जो परोसेगी खा लूँगा
माखन सरीखा
अंगुलियाँ चाट चाट।

कॉपीराइट: 

१."मेरे सूरज का टुकड़ा" काव्य संकलन में प्रकाशित https://www.amazon.in/dp/B0C4QHLB18/
२. https://m.sahityakunj.net/entries/view/khaanaa-to-khaa-le

सन्दर्भ 

१. https://www.youtube.com/watch?v=aZ17_onC0Ug
२. https://simona-hos.medium.com/do-you-watch-television-while-eating-then-i-have-bad-news-for-you-a297713ff1bf
३. https://www.cnet.com/health/is-it-really-that-bad-to-watch-tv-or-scroll-on-your-phone-while-eating/

पृष्ठभूमि: 
टीवी/फ़ोन देखते देखते खाना खाने और खिलाने की विषैली आदत से चिंतित
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर प्रस्तुत मेरी नयी कविता
और कविता के मध्य के एक छंद में खाना खिलाने वाली नानीमाँ को एक छोटी सी श्रद्धांजलि 

फोटो क्रेडिट्स: https://www.megapixl.com/kid-watching-tv-illustration-9314687

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