Wednesday, August 3, 2022

कच्ची रोटी

 कच्ची रोटी 

एक डोरी से बंधे 
अनेकों चंगे अष्टे, 
कुछ मुझसे छोटे
जो मेरे कहने पर 
जबरन बेधड़क 
दूल्हा दुल्हन बन जाते थे, 
मेरे होते हुए कभी 
पोशम्पा भाई पोशम्पा में 
पकड़े नहीं जाते थे।  
तो कुछ मुझसे बड़े
जो कभी मुझे कैंची से 
सायकल चलाना सिखाते थे, 
तो कभी लुकाछुपी में 
मुझे ऊंची खिड़की में छुपा
अंत में ढूंढना ही भूल जाते थे।  
अनेकों खेल 
अनेकों सहज हाव,  
छह की छह ऋतुओं में 
केवल एक सौहार्द का भाव।  

जितने झटके से छुटपन छूटा 
उससे दुगुनी गति से 
बीते अगले कुछ दशक, 
आज सारे अतिव्यस्त 
जीवन की आपाधापी में 
बन चुके हैं शुद्ध प्रबुद्ध वयस्क।
अनेकों संघर्ष   
अनेकों जटिल हाव,  
अनगिनत ऋतुएँ
अनेकों मिश्रित भाव।   

विद्वानों से सुना है
रीत यही चली आती है, 
हर डोरी समय के 
समझ के साथ 
अंततः पूर्णतः टूट ही जाती है।
पर क्या करूँ 
वनस्पति-कक्षा की 
वह ज्वलंत आकृति 
मानस पट से मिट नहीं पाती है,   
वृक्ष ले अनेकों रूप 
पर द्वितीयक तृतीयक जड़ें  
सदा जुड़ी ही रहती हैं, 
शायद इसीलिए वह डोरी 
हर दुःखद ऋतु में 
आंसू से आंसू मिला 
मेरे आसपास ही बहती है। 
 
हाँ! 
अब हैं सौहार्द के 
अतिरिक्त अनेकों भाव 
पर है एक आशा की छाँव,
कि आएगी एक सशब्द ऋतु,
कि छोटों को जताऊँ 
मैं अब भी वही हूँ
तुम्हारी माँ छोटी, 
और बड़ों को बताऊँ 
मैं अब भी वही हूँ
आपकी कच्ची रोटी।  

Published/Copyrighted: https://sahityakunj.net/entries/view/kachchi-roti

पृष्ठभूमि: बचपन को बचपन बनाने वाले मेरे सभी छोटे बड़े भाइयों बहनों (अंग्रेजी में "कज़िन्स") को समर्पित 


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