Wednesday, November 24, 2021

Mere Sooraj Ka Tukda

Published here: https://sahityakunj.net/entries/view/mere-suraj-ka-tukda 

 मेरे सूरज का टुकड़ा 

हाँ नहीं देखा तुम्हे कभी 
बस देखी एक तस्वीर, 
एक सुनहरे चेहरे का गोलाकार
जिसमे निहित जैसे सौर परिवार।  

हेमंत की धूप सी भीनी मुस्कान
अरुणिमा से रंगे अधरो के कमान,
मध्यान्ह के सूर्य को भले ही ताक लूं लगातार,
इन चौंधियाने वाली चमचमाती आंखो में
नहीं झांक पाऊं एक भी बार, 
सुवर्ण कृष्ण सी छवि घुंघराले बाल लिए, 
किरणों सा वात्सल्य बिखेरती
दिवंगतों संगियों भावी आगंतुकों के लिए।  

इस रवि छवि पर नहीं हुआ
किसी अंजन का असर,
अपनों की सपनो की सूर्यदेवता की
लगनी ही थी नज़र। 
क्यों अस्त हुए यह बोध नहीं
कहाँ रूपांतरित हुए यह ज्ञात है मुझे, 
उस शून्यस्थान में गए थे छोड़  
एक लौ एक लपट,  
जो मैने उठा ली थी झट से झपट के,
जन्मदिन की भोर मिला
नया खिलौना समझ के। 

आज चार दशक पश्चात्
सवितुर की कृपा से 
उस लौ के उजाले में,
तुम दिवाकर से स्पष्ट दिखते हो मुझे
जनक की तपस्या नियमितता अनुशासन में
तेजस ऊर्जा आभा से मिलते उदाहरण में,
जननी के नर्म स्पर्श से मिलती राहत में
हाथ से बुने अनगिनत ऊनी कपड़ों की गरमाहट में,
भार्या की रक्षात्मकता सौहार्द में
अंधेरों से रावणों से अकेले डटकर निपटने की आग में।  

जानती हूं -
दिनकर की दूरी से अधिक दूर हो 
नही मिलोगे खेलने-लड़ने को
दो क्षण के लिए भी,
पास होते तो शायद लड़ लेते 
इस कृत्रिम सोने सी दुनिया से
थोड़ा मेरे लिए भी।   

पर जहां भी हो बस जान लेना -
मेरे अंतर्मन के आदित्य! 
उस लौ को रखती हूं सहेज कर
तुम्हारी सोनम धरोहर की तरह,
सदा रहते हो मेरे ही संग
मेरे रक्षाकवच मेरे सहोदर की तरह।   

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