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मेरे संग?
दिन रात
एक उपदेश सुनाई आता है -
एक उपदेश सुनाई आता है -
सूरज चाँद के जैसे
हर में से हर एक
हर में से हर एक
अकेले ही आता
और अकेले ही जाता है।
और अकेले ही जाता है।
पर उपदेश के भेष में
मुझे यह उपहास नज़र आता है,
मुझे यह उपहास नज़र आता है,
क्योकि -
मैं तो अकेली नहीं आई थी,
संग एक बहुमुखी सुरंग लाई थी।
हाँ! एक सुरंग
जो कभी मशाल की बदली बन ध्यान बरसाती,
तो कभी ढाल की छतरी बन शरण दे जाती,
कभी उड़नखटोला बन गगन सैर करवाती,
तो कभी तारक सेतु बन मुझ एक को अनेकों से जोड़ जाती।
कभी उड़नखटोला बन गगन सैर करवाती,
तो कभी तारक सेतु बन मुझ एक को अनेकों से जोड़ जाती।
मैं तो सरल मोम थी
पर असलियत विलोम थी -
मशाल थी धुआँ
और ढाल थी कुआँ,
उड़नखटोला नहीं था बेड़ियों का खाट
और सेतु नहीं -
था भीड़ से भेड़ बनने की यात्रा के अंत में खड़ा
एकांतवास का द्वार।
था भीड़ से भेड़ बनने की यात्रा के अंत में खड़ा
एकांतवास का द्वार।
तार तार हुआ था
मेरा हर यथार्थ ,
और उपहास की पात्र
तो मैं थी मात्र !
सुरंग थी ही नहीं
थी तो बस मैं
अकेली खोखली स्वयं से हारी ,
सच कहती थी कलकत्ते की संतनी
कोई संग न होना है दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी।
पर एक शांत कहावत भी है
नकारना है बीमारी
तो उपचार है भान,
तो वर्षों के मंथन से
अंततः लिया यह जान -
अंततः लिया यह जान -
है संग एक प्रभात
जो मेरी काया को जांच
कर्मों को छाँट लेती है,
है संग एक रात
जो मेरी रूह को जान
कम्पन को पहचान लेती है।
जो मेरी रूह को जान
कम्पन को पहचान लेती है।
है संग एक ब्रह्माण्ड
जो मेरी जीवन दृष्टि
ज्यों का त्यों नाँद रहा है,
और है संग एक चुम्बकीय भूगोल
और है संग एक चुम्बकीय भूगोल
जो मुझे अरुणिमा पूर्णिमा
और ब्रह्माण्ड की त्रिवेणी से बाँध रहा है।
हाँ मैं अकेली नहीं
एकांत में हूँ,
अँधेरी नहीं
अयथार्थता को चीरते
चिराग में हूँ।
बीमारी में नहीं
आत्मा को वास्तविक रूप से खिलाते
वसंतकाल में हूँ।
खोखली नहीं
समाज से अप्रभावित
परिवेश सुकान्त में हूँ।
सुरंग में नहीं
स्वयं को टटोलते
आत्म साक्षात्कार के उपहार में हूँ।
हाँ! मैं अकेली नहीं
अकेलेपन के अंत
एक सुन्दर अनुभूति
एकांत में हूँ।
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भूमिका :
गर वह बूँद भी मिल गयी होती सागर में
तो कहाँ से वह मोती होता
तन्हाई की भी अपनी वजह होती है - गुलज़ार
विश्वशनीय सूत्रों से
पता चला है कि
मायावन की पत्ती पत्ती झूठी है,
एकजुट सी दिखती
इस बेल की
हर कड़ी ही टूटी है।
फिर भी विवेकमय -
खींच ही लेती हूँ
हर क्षण में सांस
तपोवन की धरती जो
अब तक ना रूठी है,
और छोड़ ही देती हूँ
हर छंद को पार
सरस्वती कृपा जो
अब तक न छूटी है।
पता चला है कि
मायावन की पत्ती पत्ती झूठी है,
एकजुट सी दिखती
इस बेल की
हर कड़ी ही टूटी है।
फिर भी विवेकमय -
खींच ही लेती हूँ
हर क्षण में सांस
तपोवन की धरती जो
अब तक ना रूठी है,
और छोड़ ही देती हूँ
हर छंद को पार
सरस्वती कृपा जो
अब तक न छूटी है।
एकांतवास से हाल ही में लौटी
मेरी नयी रचना - मेरे संग?
मेरी नयी रचना - मेरे संग?
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Extra
it takes 4-6 weeks of uncomfortabl isolation to rediscover who you are. Vision is formed alone. You cnt listen to friends. You cant listen to family. You cant listen to critics. What you are meant to do is seen through your eyes only. Other eyes will filter them. To their dreams. To their desires. To their view of whats possible. Dont seek attention when you dont know yourself. That confusion is a gift. When you embrace it, everything changes. YOur reality must break a few times before your path becomes clear.
तुम्हारा एकांत ही तुम्हे मनुष्य बना सकता है , भीड़ तुम्हे भेड़ बना देगी।
attention , protection , freedom , connection
समाज से अप्रभावित
प्रदूषण मुक्त
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