हमने जिया है एक ऐसा लम्हा
जिसके आगे ज़िन्दगी का
हर दूसरा लम्हा फीका सा लगता है
जिसका मवाज्ना अनजाने में
आने वाले हर लम्हे से करते हैं
उस लम्हे ने हमें अपना
गुलाम सा बना दिया है
इस ही कशमकश में रहते हैं कि
क्या ये खुशनसीबी है
जो ऐसा लम्हा जिया है
या बदनसीबी कि
फिर कभी किसी लम्हे में
कोई रोशनी न देख पाएंगे
जिसके आगे ज़िन्दगी का
हर दूसरा लम्हा फीका सा लगता है
जिसका मवाज्ना अनजाने में
आने वाले हर लम्हे से करते हैं
उस लम्हे ने हमें अपना
गुलाम सा बना दिया है
इस ही कशमकश में रहते हैं कि
क्या ये खुशनसीबी है
जो ऐसा लम्हा जिया है
या बदनसीबी कि
फिर कभी किसी लम्हे में
कोई रोशनी न देख पाएंगे
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