कहाँ तक पढ़े हो?
साक्षात्कर्ता का
सरसराता पहला सवाल -
संक्षिप्त में बताइये
कौन हैं आप नौजवान?
नमस्कार! शुभ प्रभात
मुझसे मिलिए -
मैं इस सदी का "सुशिक्षित" इंसान।
दूजे प्रश्न संग पेंचीला निहार -
अब शिक्षा की परिभाषा का
यूँ कीजिए विस्तार,
कि स्पष्ट छन जाए
कि कौन पढ़ा-लिखा सुशिक्षित
और कौन अनपढ़ गँवार।
इस पर्वतीय प्रश्नद्वय से
मैं निरुत्तर बेचैन,
पर दो पर्वतों के मध्य से
जैसे सूर्य सी उगती
एक तस्वीर पर ठहरे नैन।
सदी पुराना दूत
आज भी सर्वभूत,
लघु-महा विद्यालयों में
कार्यालयों पुस्तकालयों में,
राजपत्रों सुविचारों में
सोशल मीडिया की दीवारों में।
विचार श्रृंखला टूटी
तो था शृंग सा ऊंचा उजाला
अवचेतन मन से
यह सजा सजाया उत्तर दे डाला -
शिक्षा के अर्थ से पहले
समझना होगा धर्म का भावार्थ,
क्योंकि धर्म ही है
शिक्षा का साधक आधार,
और असली धर्म है
अध्यात्म में अनुभूति में,
इंसान में निहित
देवत्व की अभिव्यक्ति में।
हर जीव में जन्मजात विद्यमान -
हैं सारी शक्तियाँ समग्र ज्ञान
इस भाव की जागृति ही असली शिक्षा है,
है योग्यता प्रवृत्ति सामर्थ्य अपार
इस निपुणता की अभिव्यक्ति ही असली शिक्षा है।
सोचने का सामर्थ्य
है दूजा संकेत
अतः स्वतः सुगमता से जाने
उचित अनुचित में भेद। (२)
अनगिनत योजनाएँ
जनना है तीजा लक्षण,
किन्तु अनेकों में अल्प को चुन
समर्पित सम्पूर्ण जीवन। (३)
चौथा प्रतीक, हर पाठ का
वास्तविकता में प्रयोग,
स्वयं की समस्याओं का हल
स्वयं ही खोजने में सुयोग्य। (४)
मात्र एक जीवन ध्येय
है पाँचवा निशान,
उपरोक्त शिक्षा की ललक
शूर का साहस परोपकार चरित्र निर्माण,
अधिक महत्वपूर्ण -
हो आलोचना या प्रशंसा
हो लक्ष्य कृपालु या चिंतित,
हो देहांत आज या सदी में
न्याय पथ से कदाचित नहीं विचलित। (५)
उत्तर सुन प्रश्नकर्ता
पूर्णतः प्रभावित निशब्द,
हर ओर से बरसे
वाहवाहियों बधाइयों के शब्द!
फिर भी जाने क्यों
रात बेचैनी
घर कर आई थी,
निराकार एक अंदर से
बाहर को चल कर आई थी।
संयोग से पूछ बैठी
वही दो सवाल
बस अंतर इतना कि
भाषा थी अति आसान -
शिक्षा की सीमा को देखो
देख सकते हो जहाँ तक,
फिर सोच कर बताओ
तुम पढ़े हो कहाँ तक?
शिक्षा -
मेरी बुद्धिमता का चित्रण
आजीविका का साधन।
शिक्षा की सीमा -
कक्षा अध्यापन डिग्री से लेकर
परीक्षा प्रतिस्पर्धा पदवी तक।
शिक्षा और धर्म में
नहीं दिखता कोई सम्बन्ध,
पर मेरी धार्मिकता के
प्रमाण हैं अनंत -
धर्मरक्षक ध्वजधारक मैं
वेद पुराण कंठस्थ,
बैठक कक्ष में
सोशल मीडिया पर
तर्क कुतर्क ज़बरदस्त,
मतभेद में
निःसंकोच दुर्वचनी मैं
अन्य धर्म जो हैं भ्रष्ट।
मन के हर कक्ष में
तथ्यों की ढेर सजी है,
ध्यान को पांव धरने की
जगह ही नहीं बची है। (१)
यूँ तो मैं बहुआयामी
विचारक कलाकार वयस्क,
पर सही सोचने की कला में
कुल जोड़ शून्यमयस्क। (२)
योजनाएँ मौलिक ना सही
पर हैं सौ से अधिक समस्त,
और उतनी ही दिशाओं में
मैं गर्व से अतिव्यस्त। (३)
निशिदिन श्रवण पाठन
सुविचार प्रवचन दोहे पुरजोश,
किन्तु यथार्थ के
हर संकट में संघर्ष
हर दशा में असंतोष। (४)
अध्यात्म अंशदान कल्याण
तो लगते विदेशी से व्यंजन,
जीवनध्येय मात्र एक
मनोरंजन मनोरंजन मनोरंजन। (५)
नमस्कार! पुनः शुभ प्रभात
मुझसे मिलिए -
मैं इस सदी का पढ़ा लिखा गंवार,
पर गुरुकुल जाने की आयु
तो कब ही हुई है पार!
अब बस एक चाह
कि कर जाऊँ
एक प्रतिमा का निर्माण,
"उतिष्ठत। जाग्रत।
प्राप्य वरान्निबोधत।"
पर धर पाऊँ कुछ ध्यान,
एक सदी में ही सही
पर सत्य में बन जाऊँ
एक सुशिक्षित इंसान।
सन्दर्भ: "My Idea of Education" by Swami Vivekanand
Published/ Copyrighted : https://sahityakunj.net/entries/view/kahaan-tak-padhe-ho
Background Photo credit: https://www.culturalindia.net/reformers/vivekananda.html
पृष्ठभूमि: भारतवर्ष के राष्ट्रीय युवा दिवस पर मेरी नई रचना