भ्रमजननी
ऐ मेरे वंशधर!
जिस क्षण बना था वह
दो गुलाबी रेखाओं का रोचक समाचार,
उस क्षण से बना है तू
मेरी हर मंशा का राजकुमार।
मेरा तेरा सम्बन्ध
सरल सीधा स्पष्ट,
मैं तेरी पालिका
निर्णायिका परिवर्तक,
तेरी विजय हेतु उत्सुक
छवि हेतु अतिसजग।
हर क्षण में भरे
गतिविधियाँ आहार कार्यभार,
हर कण में भरे
खिलौनें जुगत उपहार।
तेरी शुद्धि हेतु लायी
प्रवचनों की बौछार,
तेरे सिद्धि हेतु लगायी
नियमों की कतार।
पर! उत्तर में मिल रहा
एक अनोखा बर्ताव
क्षण क्षण नए आवेश
नए टकराव नए बुलाव,
कभी असत्य कभी चोरी
कभी तिरस्कार तो
कभी बंद बोलचाल,
निशिदिन सेवा
निरंतर निष्ठा
और हाथ आया
मात्र एक लुप्त सरोकार!
ऐ प्रदर्शक भ्रमजननी!
सर्वजानकार योजनाकार,
आओ हम भी सुना डालें
एक विलोम समाचार -
तेरा यह सम्बन्ध
रैखिक नहीं पर है गोलाकार,
तू नहीं कोई पालिका
तेरा प्रतिपालक है यह नेत्तृत्वकार,
तू नहीं कोई निर्णायिका
स्वयं निर्णयात्मक है यह जन्मजात बुद्धिमान,
तू नहीं कोई परिवर्तक
अपितु तुझे ही मिला है
परिणत होने का
एक निमंत्रण स्वर्णधार,
यदि कभी जान पाएगी यह भेद
शब्द नहीं जुटा पाएगी
प्रकट करने को आभार।
न्योछावर किया था
वस्तुओं क्रियाओं का भण्डार,
पर अपेक्षित था मात्र
भावुक समक्षता स्वीकृति का उपहार।
झल्ला कर बोली थी
तू क्रोध न कर,
चिल्ला कर बोली थी
तू मृदुता से बोला कर,
व्यग्र हो बोली थी
तू ध्यान धरा कर,
जब मानहर नाम दिए थे
करके अनंत अधिकार
तब तेरे शब्दों से बना रहा था
एक आतंरिक संसार,
पहले विचारा न होगा
अतिव्यस्तता अहं के कारण
पर आज सोच
कहीं दे तो नहीं रही
तू एक विसंगत उदाहरण।
कर स्वयं का पुनर्जन्म
जब कभी तेरे अंश के जीवन में
वयस्कता के उत्कंठन
धुरंधरों को तक नानी याद दिला देता है
निःसंदेह इस युग का सबसे दुष्कर कार्य है - बच्चे की परवरिश
डॉ. शेफ़ाली टसबरी (@doctorshefali) की किताब "The conscious parent" का सार बटोरती अंतर्राष्ट्रीय अभिभावक दिवस पर प्रस्तुत
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