क्षण गणन
यूं एक क्षण में सिमटा
मेरा सारा भ्रमाण्ड,
भूत भविष्य के दोनो काल,
तीनों मन लोक और चारो धाम।
इसमें ही समाईं
पंचतत्व दर्शाती छह ऋतुएं
सात समुंदर की अष्टभुजायें,
और नवरस बरसाती दसों दिशायें ।
इसे बिखरने ना दे
एकादशी के आते जाते
यह कृष्ण शुक्ल उत्सव,
और बिसरने ना दे
प्रतिवर्ष आता सूर्य से सुनहरा
यह बारहवां दिवस ।
इस क्षण से हर क्षण
को तोलते तोलते,
बीता अर्ध जीवन
यही मोलते मोलते,
क्या है मेरा सौभाग्य
इस क्षण कों अतीत में
क्षण भर छू पाना,
या मेरा मंद भाग्य
हर भावी क्षण का
यू शून्य मात्र रह जाना ?